Thursday, 24 September 2020

यह साथ बरकरार रहें

बरसों पहले पकड़ा था यह हाथ
कभी न छूटे यह साथ
अकेले हो तब भी एक साथ है काफी
भीड़ हो तब भी यह सहारा है काफी
पहले कुछ शिकवा शिकायते थी
आज समय के साथ वह सब खत्म हो गई
बरखा जैसे झर झर जल के साथ
सब कुछ धो डालती है
उसी तरह इस मन में भी
जो कुछ था सब धुल गया
समय के साथ विचार बदल गए
पहले तुलना करती थी औरों से
मीन मेख निकालती थी
कमतर आंकती थी
वह सब खत्म हो गया
तुम भी बदल गए
मैं भी बदल गई
एक दूसरे के लिए हुआ यह बदलाव
काफी हद तक
पूर्ण रूप से तो यह संभव भी नहीं
अब हाथ पकड़ने का शौक नहीं
अब यह सहारा है
महसूस होता है
कोई अपना है
जो सुख दुःख का साथी है
निश्चिंत होकर साथ चलती हूँ
गिरू तो संभाल ही लेंगे यह हाथ
विश्वास है अपने से ज्यादा
यही तो होता है जीवनसाथी का रिश्ता
जो बिन बोले
सब समझ जाएं
तुम्हारी पीडा को हर ले
जरूरतो को समझे
वह अमीर है
वह गरीब है
पढा लिखा है
अनपढ़ है
सुंदर और सुदर्शन है
काला - गोरा है
यह सब बेमानी
बस एक बात है मानना
उसके दिल में तुम्हारे लिए प्यार है कितना
वह शाहजहाँ भले न हो
ताजमहल भले न बनवा सके
पर तुम्हारे लिए चट्टान खोद कर सडक बना दे
मांझीराम ही सही
है तो कोई तुम्हारा
जो तुम पर जान छिड़कता हो
अपने से पहले तुमको मानता हो
तब क्या गिला शिकवा
सब भूल जाओ
यह हाथ थामे रहो
मुस्कराते रहो
बस यही प्रार्थना करते रहो
यह हाथ कभी न छूटे
यह साथ बरकरार रहे

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