Thursday, 1 October 2020

ऐसी है हमारी प्रकृति जान

आज तो प्रकृति भी झूम रही है
नाच रही है
गा रही है
झूला झूल रही है
मदमस्त हो रही है
इधर-उधर डोल रही है
सूरज की खिली खिली धूप में मुस्करा रही है
प्रकाश के साथ सबको जगा रही है
सबमें चैतन्य और उर्जा भर रही है
फूलों में खुशबू बन महक रही है
रून झून रून झून गा रही है
कोयल की कूक में बोल रही है
मोर के पंख में समा नाच रही है
हवा के साथ झकझोरे ले रही है
ओस की बूंदों को मोती बन पी रही है
पक्षी के घोसलो से ची ची कर रही है
मौसम को सुहावना बना रही है
सबको प्रसन्न कर रही है
दिल खोलकर दे रही है
जिसको लेना हो ले
जिसको खुशी समेटना हो समेटे
जिसको आनंदित होना है वह हो ले
सब उसके लिए समान
कोई भेदभाव नहीं
हर जीव में वह
यह कोई एक दिन का कार्य नहीं
सदियों से कार्यरत है
नियमित रूप से
बिना किसी स्वार्थ के
सबको करती दिल से दान
ऐसी है हमारी प्रकृति जान

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