Sunday, 13 December 2020

यह कैसा जंजाल

यह हमारा ही घर है न
यह हमारा ही पडोस है न
यह हमारा ही कंपाउंड है न
यह हमारा ही रोड है न
यह हमारा ही शहर है न
फिर क्यों डरता है मन
लगता है अब वह पहले जैसी बात नहीं
हर जगह सतर्कता
यह भी कोई बात हुई भला
जीना हो गया मुहाल
सबका हाल हो गया बेहाल
न खुली हवा में सांस ले
न खुल कर बतियाए
न आपस में मिले जुले
संदेह का कीडा हमेशा कुलबलाए
कब क्या हो
हाथ धोते धोते
मास्क लगाते लगाते
सेनिटाइज करते करते
नियम का पालन करते करते
फिर भी सुकून नहीं
कब कहाँ से आक्रमण
यह भी नहीं पता
अनिश्चितता हर पल
अब जीना भी लगता है जंजाल

No comments:

Post a Comment