Friday, 11 December 2020

मेरी बिल्ली मुझी से म्याऊँ

तुम्हारा बोलना भी मुझे भाता है
उसमें भी आनंद आता है
ऐसी हो
वैसी हो
ऐसा करती हो
वैसा करती हो
कुछ नहीं आता
आपका क्या करूँ
समझ नहीं आता

तब चुपके से हंसी आ जाती है
जिसको मैंने सिखाया
चलना और अपने पैरों पर खड़ा होना सिखाया
आज वह इस काबिल है
मुझे ही सिखा रही है
किस तरह रहना
क्या बोलना
कब बोलना
किस तरह से बोलना
कैसे कपडे पहनना
खाने में परहेज

तब ऐसा लगता है
मैं नादान हूँ
बच्ची हूँ
जब मेरा हाथ पकड़कर सडक पार करवाती है
कभी-कभी बेवजह भी डांटती है
फिर भी अच्छा लगता है
एक कहावत याद आती है
मेरी बिल्ली मुझी से म्याऊँ

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