किसान रोयें जार जार
देश में मचा है हाहाकार
मजबूर हो गए
तब आ सडक पर बैठ गए
जिन हाथों में हल व फावड़ा
उन हाथों में है पोस्टर
बैलों के पीछे हांक लगाते
आज कर रहे हैं नारेबाजी
ये सब हैं सीधे-साधे
नहीं आता इन्हें कोई पैंतरेबाजी
इनको मत हथियार बनाओ
इनके कंधे पर रख बंदूक मत चलाओ
अपनी राजनीतिक रोटियां मत सेको
हो सके तो इनकी मांगों को पूरी करों
अन्नदाता रोष में है
कुछ तो ख्याल करों
इनकी शक्ति को पहचानो
बंजर को भी उपजाऊ बनाते हैं ये
मौसम की मार सहते हैं ये
दिन रात परिश्रम करते हैं
तब जाकर कहीं अन्न उगाते हैं ये
मिट्टी को सोना बनाते हैं
सीचं सींच कर फसल लगाते हैं
हरियाली से हरा भरा करते हैं
सब तक अन्न पहुंचाते हैं
तब क्यों इनकी आह निकलती है
पीडा से कराह निकलती है
आत्महत्या को मजबूर करती है
इनके बिना नहीं किसी का गुजारा
सबके है यहीं सहारा
उनका दर्द सबका दर्द
हर समय सब उनके साथ
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Tuesday, 8 December 2020
अन्नदाता की गुहार
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