Saturday, 2 January 2021

उसी को तो कहते हैं शायर

क्या लिखती रहती हो
इससे क्या मिलता है
क्या फायदा
यह सुनती हूँ अक्सर
पर बाज नहीं आती लिखने से
कुछ लोग हंसी - ठिठोली भी करते
घर हो या बाहर
यह होता है अक्सर
मन ही मन मुस्काती हूँ
सबकी बातों को टाल जाती हूँ
उन्हें क्या पता
इसकी अहमियत
कितना सुकून मिलता है
लिखना मेरा पेशा नहीं पैशन है
दिल की बात शब्दो में उकेरना
शब्दों के साथ खेलना
ऑख - मिचौली करना
यह तो सबके बस की बात नहीं
यह कोई साधारण बात नहीं
शब्दों से जिसको खेलना आ गया
उसे किसी की जरूरत नहीं
एक ही साथी काफी है
वह न छूटेंगी न जाएंगी
हमेशा साथ ही रहेंगी
अपनी भावना उसी के साथ शेयर
उसी को तो कहते हैं शायर

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