Monday, 18 January 2021

ऊंचाई आसमां की मापता हूँ

जमीन पर ही पैर मेरा
ऊंचाई आसमां की मापता हूँ
मैं पंछी तो नहीं जो तुरंत उड जाऊं
हाँ आसमां को छूने की चाहत जरूर रखता हूँ
पंख तो नहीं है पास मेरे
इरादे बेशक अटल है
मैं तो वह परिन्दा हूँ
जो जमी पर रह आसमां की उडान भरता हूँ
राह में आएं कितने भी रोडे
तपते सूरज ने भी ऑख दिखाई
फिर भी हार नहीं मानी
सूर्य की किरणों को छूने की चाहत रखता हूँ
जहाँ पहुँचना आसान नहीं
वहाँ पहुँचना चाहता हूँ
हर असंभव को संभव बनाना चाहता हूँ
हार कर  बैठ रहना यह स्वीकार नहीं
हाथों को ही पंख बना कर उडान भरना चाहता हूँ
जमी से ले आसमां को अपनी मुठ्ठी में करना चाहता हूँ
कामयाबी हासिल होगी
सफलता कदमों को चूमेगी
इतनी आशा और विश्वास मन में समाई
जीवन में हर रंग भरूंगा
अपने लिए ही नहीं औरों के लिए भी
बहुत कुछ करूँगा
जीवन व्यर्थ नहीं करूंगा
जीना सार्थक हो यह प्रयास होगा
जमीन पर ही पैर मेरा
ऊंचाई आसमां की मापता हूँ.

No comments:

Post a Comment