Monday, 18 January 2021

हम तो लिखते रहे

हम तो लिखते रहे
अपनी भावनाओं को कागज पर उतारते रहे
सोचा था कोई पढेगा
कोई समझेगा
पर लोगों के पास फुर्सत नहीं
सब अपनी ही मुफलिसी में व्यस्त
हर किताब का खरीदार नहीं मिलता
हर किरदार को समझने वाला नहीं मिलता
लेखक की लेखनी तो चलती है
कवि की कल्पना भी कब थमती है
भावना तो कभी मरती नहीं
वह तो युगों - युगों तक साथ चलती है
हर युग की छाप किताबों में छोड़ जाती है
यह बात दिगर है
हर लेखनी को वाहवाही नहीं मिलती
तब भी लेखनी तो किसी न किसी रूप में गतिशील रहती
वह अपना काम करती है
वक्त की नजाकत को भी समझती है
तभी तो न जाने कितनी बातें नजरअंदाज करती है
लिखना पेशा नहीं शौक होता है
उस शौक को पूरा करना है
कभी कागज के पन्नों पर
कभी मोबाइल पर
हाँ पर विराम न लिया
हर रोज कुछ न कुछ लिखा
अपने ही दिल को दिलासा दिया
कोई तो पढेगा
कोई तो समझेगा
हम तो लिखते रहे
अपनी भावनाओं को कागज पर उतारते रहे

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