Thursday, 6 May 2021

विवश मानव

विनाश और निर्माण  के मुहाने पर  खड़ा  मानव
इतना लाचार  इतना विवश कभी नहीं
महामारी  ने  सब कुछ  धराशायी  कर दिया
जैसे जीने का अधिकार  ही छीन लिया
न चैन से रह सकता है
न खा - पी सकता है
स्वतंत्रता  जो उसका अधिकार  है वह भी छीन लिया
लाकडाऊन  में  सबको बिठा दिया
बच्चे या बुढे  या फिर जवान
सब है त्रस्त
पढाई  से मरहूम
खेल से मरहूम
कोई  एक्टीविटी नही
जिम , जाॅगिग  सब बंद
पूजा - अर्चना  बंद
आना - जाना बंद
काम - काज बंद
भविष्य  के सपने बुनने वाला मानव
आज वर्तमान  से ही डरा हुआ
घबराया हुआ
केवल खाना और सोना
और करें  क्या ??
फिर भी
जान है तो  जहान है
इसलिए  सब कर रहा है
इंसानियत  पल - पल मर रही है
अपने - अपनों  से दूर हो रहे हैं
सारे रिश्ते  और संबंध  बेमानी
ऐसा तो पहले कभी नहीं

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