घर मेरा फिर भी लगता पराया
पराई मैं बचपन से तब भी था यह प्यारा
अचानक यह हुआ
ऐसा भी नहीं है
ससुराल गई
शुरू शुरू में तो याद आती थी
मैं भी आती - जाती थी
धीरे-धीरे यह लगने लगा
एहसास होने लगा
नहीं यह मेरा नहीं है
मैं कुछ दिन की मेहमान हूँ
आना होता नहीं कि जाने के दिन गिनने शुरू
सबकी निगाहें मुझ पर
सबका एक ही सवाल
कब तक रहना है
कब तक जाना है
ससुराल में भी एक सवाल
कब लौटोगी
कब तक रहोगी
जल्दी आना
ज्यादा दिन रहने की जरूरत नहीं
एक जाने की बाट जोहते
एक आने की
एक मायका था
एक ससुराल था
अब मुझे भी समझ आ रहा था
कौन सा मेरा है
जिंदगी कहाँ बिरानी है
मान - सम्मान कहाँ मिलेगा
अधिकार कहाँ मिलेगा
एक जगह मेहमान
दूसरी जगह अधिकार
यह तो सबके साथ ही है
सबको पता है
रहना ससुराल में ही है
वही असली घर है
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Sunday, 4 July 2021
असली घर ??
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