Monday, 5 July 2021

कुछ न कुछ छूट ही जाता है

आज चाय पीते- पीते हाथ से कप छूट गया
चाय यहाँ- वहाँ बिखर गई
मन खिन्न रह गया
सुबह- सुबह ही ऐसा
बात तो छोटी सी थी
साफ कर दिया फर्श को
कपडे वगैरह पर भी जो छींटे वह साफ हो जाएंगे
दाग भी फीके पड जाएंगे और एकाध दिन में खत्म

बात तो चाय की थी
यहाँ तो जिंदगी ही छूटी जा रही है
हर बार सहेजा जाता है
फिर भी कुछ न कुछ रह ही जाता है
हम उधेड़बुन में पडे रहते हैं
कभी-कभी तो निराश हो जाते हैं
कोई उपाय नहीं सुझता
कभी-कभी  इतना गहरा असर हो जाता है
कुछ घटनाओं का
वह आजीवन खत्म नहीं होती

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