नई आशा नई सोच
नई राह नया विश्वास
नया सबेरा नई ताजगी
नया दिन नया सूरज
सब कुछ नया - नया
तब क्यों पुराने में उलझे
कुछ अलग करने की सोचे
अतीत की गलियों में भटकने से क्या हासिल
क्यों नहीं
नई राह चुने
नये विचार और ख्यालात रखें
मंजिल पर पहुंचने का हर संभव प्रयास करें
प्रलय के बाद भी नये सूरज का आगमन होता ही है
सृष्टि का निर्माण भी होता है
प्रकृति भी अंगडाई लेती है
कल जो तहस-नहस
आज फिर हरा - भरा
जीवन तो मरता नहीं है
जब तक सांस तब तक आस
विधि का विधान तो ज्ञात नहीं
वह तो अनिश्चित है
तब क्यों डरें
उठते हुए कदमों को क्यों रोके
चलना तो है ही
बैठ रहने से काम नहीं चलने वाला
तब फिर उठिए
उठ कर खडे हो
चलते रहो
चलते रहो
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Saturday, 23 October 2021
चलते रहों
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