Saturday, 23 October 2021

चलते रहों

नई आशा नई सोच
नई राह नया विश्वास
नया सबेरा नई ताजगी
नया दिन नया सूरज
सब कुछ नया - नया
तब क्यों पुराने में उलझे
कुछ अलग करने की सोचे
अतीत की गलियों में भटकने से क्या हासिल
क्यों नहीं
नई राह चुने
नये विचार और ख्यालात रखें
मंजिल पर पहुंचने का हर संभव प्रयास करें
प्रलय के बाद भी नये सूरज का आगमन होता ही है
सृष्टि का निर्माण भी होता है
प्रकृति भी अंगडाई लेती है
कल जो तहस-नहस
आज फिर हरा - भरा
जीवन तो मरता नहीं है
जब तक सांस तब तक आस
विधि का विधान तो ज्ञात नहीं
वह तो अनिश्चित है
तब क्यों डरें
उठते हुए कदमों को क्यों रोके
चलना तो है ही
बैठ रहने से काम नहीं चलने वाला
तब फिर उठिए
उठ कर खडे हो
चलते रहो
चलते रहो

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