Sunday, 14 November 2021

बचपन कहीं खो गया है

मैं  अपना बचपन ढूंढ रही हूँ
इन बच्चों में
वह कहीं नजर नहीं आता
वह छुपम छुपाई
वह खो खो
वह कबड्डी
वह कटती पतंग के पीछे दौड़ लगाना
वह दिन भर मटरगश्ती करना
घर पर बस खाना खाने आना
यहाँ वहाँ भटकना
बारिश में भीगना
कीचड़ में सन जाना
शैतानी करना
मार भी खाना
आज सब बदला बदला सा
शांति का माहौल
उधम- उछलकूद  गायब

अब तो एक जगह बैठे हैं
हाथ में  मोबाईल है
लैपटॉप है
सामने टेलीविजन भी है
सब अपने में व्यस्त हैं
किसी को देखने की फुर्सत नहीं
बचपन तो कहीं नजर ही नहीं आ रहा
न बच्चों में न बूढो में
हमारे समय तो बूढे भी बच्चे बन जाते थे
बच्चों के रंग में रंग जाते थे
अब वह कहीं नजर नहीं आता
लगता है
बचपन कहीं खो गया है

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