Tuesday, 9 November 2021

मैं बेचारा पांच सौ का नोट

दीपावली की साफ - सफाई जारी थी
हर एक सामान को झाड पोछ कर रखा जा रहा था
किताबें साफ करते समय उसके बीच के पन्नों में पांच सौ रूपये के तीन नोट मिले
कुछ समय तक ऐसे ही किंकर्तव्यविमूढ़ बन बैठी रही
बैंक में सब तो वापस कर दिया
यह कहाँ से रह गए
याद आया वह मेरी पहली कमाई के थे
बडे जतन से रखा था अपनी प्रिय किताब में
पर्स में रखती तो खर्च हो जाता
यह मेरी याद है
मेरा गर्व और अभिमान है
मेरे स्वावलम्बन का साक्षी है
यह बहुमूल्य है ऐसे ही रहेगा
वही गर्व आज बेचारा लग रहा था
मुंह चिढा रहा था
मानों कह रहा हो
और सहेज कर रखों
छुपा कर रखों
देखों उसका परिणाम
अरे मैं रूपया हूँ
चलायमान मेरा स्वभाव है
समय-समय पर रूप बदलता रहता हूँ
यह पहली बार नोटबंदी नहीं हुई
इसके पहले भी हुई
तब हजार के शक्ल में था
लोगों ने सिगरेट बना - बना कर फूंकी थी
मेरा जन्म बंद होने के लिए नहीं है
उपयोग करने के लिए हैं
पैसे से पैसा बढता है
उपयुक्त जगह लगाने से
किताब और तिजोरी में बंद करने से नहीं
पता है न
लक्ष्मी अस्थिर हैं
एक जगह टिकना उनका स्वभाव नहीं
मैं अचानक जैसे नींद से जागी
सर झटका और सोच लिया
अब आगे से ऐसा बिलकुल नहीं होगा ।

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