अब बाबूजी वह पहले वाले बाबूजी नहीं रहे
जो मिला वह खा लिया
कोई शिकवा शिकायत नहीं
जहाँ खाट डाल दी गई
वही सो रहे
घर में कौन आता है
कौन जाता है
कौन क्या करता है
कब कौन सोता है
कौन कब जागता है
कौन दिन भर टेलीविजन देखता है
कौन रात को घर , देर से आता है
कौन होटल से खाना मंगाता है
कौन से दोस्त घर आते हैं
इन सबसे निर्लिप्त
बस अपने काम से काम
खाना मिला जैसा भी वह खा लिया
किसी ने कुछ पूछा तो उत्तर दे दिया
हमेशा बोलने वाले
अनुशासन प्रिय
कुछ भी अनुचित बर्दाश्त न करने वाले
किसी के सामने न झुकने वाले
घर के हर एक सदस्य की हरकत पर नजर रखने वाले
अपनी मर्जी चलाने वाले
रौब और ईगो में रहने वाले
आज इतना कैसे बदल गए
अब वह जान गए हैं
वक्त की हकीकत
वे बूढ़े हो गए हैं
अब वे घर के स्वामी नहीं रहें
अब वे लोग भी नहीं रहें
सब बडे हो गए हैं
समझदार हो गए हैं
उनकी बात न सुनने वाला कोई
न समझने वाला
जो बची खुची जिंदगी है
बस निर्विकार भाव से व्यतीत करना है
न वह समय रहा
न वे लोग रहें
अब बाबूजी भी पहले वाले बाबूजी नहीं रहें।
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Friday, 10 December 2021
अब बाबूजी भी पहले वाले बाबूजी नहीं रहें
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