Friday, 10 December 2021

जो मिला वह भी कहाँ कम है

पहले घर और फरमाइश
इसी को जिंदगी मान बैठी थी
पति की फरमाइश
बच्चों की फरमाइश
यह कभी खत्म होने का नाम ही नहीं लेती
कुछ अपनी भी इच्छा- आकांक्षा है
इस ओर कभी ध्यान ही नहीं गया
घर बनाने में,  संवारने में
समय गुजरता गया
महीने,  वर्ष न जाने कितने
पता ही नहीं चला
क्या खोया
क्या पाया
इसका हिसाब भी नहीं लगाया
न अपने सपने
न अपने अरमान
सब अधूरे रह गए
तब भी कोई शिकवा और शिकायत नहीं
एक हाथ दे तो एक हाथ ले
जिंदगी को देंगे तभी जिंदगी भी देगी
जो मिला वह भी कहाँ कम है
कुछ को तो वह भी मयस्सर नहीं

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