Wednesday, 8 December 2021

तैयार है तो फिर डर नहीं

कभी-कभी ऐसा लगता है
सफलता आखिर है क्या
असफलता आखिर है क्या
हम क्यों नहीं लोगों की अपेक्षाओ पर खरे उतरते
हम क्यों नहीं लोगों को जवाब दे पाते
डरते  हैं क्या हम

शायद यही सच है
हम दोस्ती चाहते हैं
रिश्ते चाहते है
प्यार और मिठास चाहते है
अपनापन चाहते हैं

वह मिलता नहीं
हममें कमी है क्या
हम अपनी कमियां ढूंढते रहे
दबते रहे
क्योंकि हमारा बोलना तो नागवार गुजरता है
बुरा लग जाता है
बात बिगड़ जाती है

यही सोच सोच चुप रहें
तब भी तो बात नहीं बनी
हर जगह डर
समाज से
परिवार से
दोस्तों से
पडोसी से
डर का क्या सिला मिला

बोल दो जो बोलना हो
सत्य जानते हुए भी अंजान बनना
आखिर कब तक
न बोलने से ही कौन सा अच्छा
तब बोल ही दो
मन को सुकून तो मिलेगा
हाँ इसके लिए बहुत हिम्मत चाहिए
परिणाम के लिए तैयार
तब ही यह हो सकता है
सबका विरोध भी सहना पड सकता है
अकेले भी पड सकते हो
तैयार है तो फिर डर नहीं

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