Friday, 5 July 2019

अब वह मैं नहीं

किसी ने खाकर फेंक दिया था
मिट्टी थी पनप गया
न कोई खाद न पानी
बहुतों ने नष्ट करने की कोशिश की
पर भाग्यवश बचता ही रहा
आखिर सब थपेडों को सह खडा रह पाया
आज बडा हो पाया

लावारिश था
न कोई परवरिश
न देखभाल करने वाला
तब भी लहलहा रहा हूँ
आज लावारिश और लाचार का ठिकाना बना हूँ
हर राहगीर दो घडी बैठ जाता है
सुस्ता लेता है

अच्छा लगता है
अपने दम पर खडा हूँ
किसी के काम आ रहा हूँ
जिंदगी भी लहलहा रही है
अब वह मैं नहीं

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