किसी ने खाकर फेंक दिया था
मिट्टी थी पनप गया
न कोई खाद न पानी
बहुतों ने नष्ट करने की कोशिश की
पर भाग्यवश बचता ही रहा
आखिर सब थपेडों को सह खडा रह पाया
आज बडा हो पाया
लावारिश था
न कोई परवरिश
न देखभाल करने वाला
तब भी लहलहा रहा हूँ
आज लावारिश और लाचार का ठिकाना बना हूँ
हर राहगीर दो घडी बैठ जाता है
सुस्ता लेता है
अच्छा लगता है
अपने दम पर खडा हूँ
किसी के काम आ रहा हूँ
जिंदगी भी लहलहा रही है
अब वह मैं नहीं
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