पावस देखी रहीम मन , कोयल साधे मौन
अब दादुर वक्ता भए , हमको पूछत कौन ?
कभी कभी मौन भी सार्थक होता है। बोलना भी समय के अनुसार होना चाहिए।
बेलगाम जबान वाले या ना समझ व्यक्ति के सामने बोल कर अपने बेइज़्ज़ती करने से अच्छा है, चुप रहो।
सार्थक बोलो , कम बोलो , मीठा बोलो , समय अनुसार बोलो।
यही जीवन का मूल - मंत्र होना चाहिए।
आज कल हमारे नेता जो बेलगाम जुबान बोलते है उन्हें इस पर अमल करना चाहिए।
जनता को भी किसी की हूटिंग करने के अपेक्षा वोटिंग से अपना मत जाहिर करना चाहिए।
जनता को काम देखना चाहिए , किसी को मज़ाक का पात्र नहीं बनाना।
नेता को भी बेकार की जबान बोल कर जनता को खुश करने और ताली बटोरने के अपेक्षा ,
अपने काम और जनता की भलाई पर ध्यान देना चाहिए।
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