सबके लिए मिसाल
पति को बिना कुछ कहे
बिना शिकवा - शिकायत
चल पडी संग
वन गमन स्वीकार किया
हुआ हरण जब सीता का
राम ने सेतु बांध दिया
समुंदर को ही पाट दिया
रावण से राघव ने युद्ध ठान लिया
सीता का विश्वास न टूटने दिया
ताजमहल तो फीका है
मृत्यु की निशानी बस एक मकबरा है
एक न जाने कितनी बेगम शाहजहाँ की
हमारे राम की तो बस एक ही प्राणप्रिया
वह जनकनंदिनी सीता हैं
राम सेतु है प्यार की अमर निशानी
संघर्षों से लिखी कहानी
नहीं काटे किसी के हाथ
नहीं बनाया बंधक
बस राम नाम ले छोड़ा पत्थर
बन गई राह समुंदर के सीने पर
गर्भवती अवस्था में फिर वन गमन
नहीं किया कोई शिकवा शिकायत
छोड़ आए प्रिय देवर
पति की मजबूरी को जाना था
तब पुत्र की मजबूरी थी
इस बार राजा की मजबूरी थी
राम को तो कर्तव्य निभाना था
मर्यादा पुरुषोत्तम की पत्नी थी
मर्यादा का पालन करना था उनको भी
उस बार पति संग थे
इस बार गर्भ में उनके अंश थे
जंगल ही लिखा था जानकी को
यह भी तो वे जानती थी
राम के दिल में बस उनका नाम लिखा है
तभी तो जब अश्वमेघ यज्ञ की बारी आई
नहीं स्वीकारा राम ने किसी को अपनी अर्धांगनी
सीता के पति रहे वे हमेशा
पत्थर ह्रदय बन जिस पत्नी को त्यागा
उसी की पत्थर की मूरत को अपने बगल बिठाया
दिखलाया दुनिया को
सीता बिना राम नहीं
तब भी ऑखें भर आई थी जन जन की
जब माता कैकयी ने वनवास का राज दिया था
अब भी भर आई थी ऑखें
जब सीता नहीं संग मूर्ति विराजमान थी
कितना छल हुआ एक राजा का
सीता सह नहीं पाई
समर्पित कर दिया धरती को
समा गई माता की गोद में
निष्कंटक राज किया राम ने
मन फिर भी रीता रहा
लगाई अंतिम समाधि सरयू में
छोड़ चले जग संसार
ऐसे थे हमारे राजा राम
ऐसी थी हमारी माता सीता
इन दोनों की प्रेम कहानी
जिसका नहीं है कोई सानी ।
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