कश्ती में बैठे हो
पतवार तुम्हारे हाथ में है
लहरे उफान मार रही है
बादल उमड घुमड रहे हैं
कडाकेदार बिजली चमक रही है
तुम्हारा मन भी विचलित हो रहा है
मन घबरा रहा है
भय लग रहा है
किनारे पर पहुंचना है कैसे पहुँचुगा
पहुँच पाएगा या बीच में डूब जाऊंगा
घनघोर अंधेरा
दूर कहीं नजर आ रहा उजाला
कश्ती के खेवैया तो तुम्हीं हो
मझधार और तूफान से निकालना तुम्हें ही है
धीरज और हिम्मत से
या फिर डर कर छोड दो
डूब जाने दो
क्या पता किनारा लग जाएं
शायद न भी लगे
निर्णय तुम्हारा है
अपनी कश्ती के खेवैया तुम ही हो ।
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