खुशी - खुशी गीत गुनगुनाऊगी
एक प्रश्न भी पुछूगी
वह तो चल दी थी तुम्हारे साथ
वादा जो था साथ निभाने का
रावण वध कर उसे छुडाया था
भले ही अग्नि परीक्षा ली हो उसकी
कोई गम नहीं गर्व था
उसके लिए लंकेश से टकराया था
हुई क्या भूल उससे
जो जनकसुता को ठुकराया था
वह भी उस हाल में जब वह गर्भवती हो
तुम प्रजापालक थे यह सर्वविदित है
तुम राजा थे अयोध्या के
किसी के पति भी थे
उसके प्रति भी कर्तव्य था कुछ
क्यों नहीं दे दिया राज भरत को
वन गमन कर लिया
अपनी सहचरिणी संग
पिता द्वारा माता को दिया हुआ वचन पुरा करने
चौदह वर्ष का वनवास स्वीकार कर लिया
क्यों नहीं विवाह वेदी पर पत्नी को दिए हुए सात वचन का मान रखा
एक अच्छे पुत्र बनने के लिए राज्य छोड़ा
एक अच्छा राजा बनने के लिए पत्नी को छोडा
यह कहाँ का न्याय हुआ
प्रजा के लिए न्याय करते अपनी पत्नी के साथ अन्याय कर बैठे
अपनी प्राणप्रिया को दूर कर तुम भी कहाँ सुखी रह पाएं
पत्थर की मूरत बना अश्वमेघ यज्ञ किया
सीता तो पत्थर की मूरत नहीं थी
जीती जागती इंसान थी जिसके रोम - रोम में राम ही राम थे
खुशी है आज जानकी के साथ विराजमान हो रहे हो
यह प्रश्न तो तब भी बना रहेगा
जनकनंदिनी का त्याग क्यों ???
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