वर्तमान शिक्षा प्रणाली में जितना समय और पैसा खर्च होता है उसकी अपेक्षा छात्रों को ज्ञान की प्राप्ति बहुत कम होती है। शिक्षा का उद्देश्य केवल प्रतिशत और अंक लाना होता है। दस - बारह वर्ष की पढाई के उपरांत भी छात्र केवल लिखने - पढ़ने योग्य बनता है। उसे किसी भी विषय का ज्ञान नहीं होता।
दूसरी बात चरित्र निर्माण और नीति की शिक्षा भी देना चाहिए। शिक्षा का उद्देश केवल शाक्षरता ही नहीं बल्कि छात्र का सर्वोपरी विकास होना चाहिए। शिक्षा व्यक्ति को सम्य, चरित्रवान, ईमानदार बनाती है। उस शिक्षा का क्या लाभ जो व्यक्ति को भ्रष्टाचारी बनाए। केवल पैसे कमाने मशीन बनाए।
एक उच्चशिक्षित बेईमान अफसर की उपेक्षा एक अनपढ़ मजदूर ज्यादा बेहतर है।
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