खुशियां साथ लाया है
वैसे तो हर वर्ष आता है
हम जोश से मनाते हैं
झंडा फहराते हैं
छुट्टी का उपभोग भी करते हैं
क्या हो रहा है देश में
क्या हो रहा है समाज में
क्या हो रहा है पड़ोस में
क्या हो रहा है परिवार में
हम सबसे अंजान
देश - दुनिया से बेखबर
अपनी ही दुनिया में मस्त
यह तो स्वतंत्रता नहीं है
जागरुकता जरूरी है
अपने अधिकार के प्रति सजगता भी
देश के नागरिक
इन नागरिकों से देश बनता है
हर एक की भागीदारी जरूरी है
जंगल में मोर नाचा उससे हमें क्या
हमने तो नहीं देखा
कोई शासक आए
हमें क्या
पड़ोसी से युद्ध हो
हमें क्या
हम शांति से घर में बैठे हैं ना
कोई भी विवाद हो
न हमें बोलना न बीच में पड़ना
यह बात शायद हमारे स्वतंत्रता के बलिदानियों ने नहीं सोची होगी
अगर ऐसा तो जवाहर जेल में नहीं रहते
सुभाष बाबू प्रशासनिक नौकरी को लात नहीं मारते
गांधी नंगे फकीर बन नहीं घूमते
भगतसिंह इश्क की पेंगे लड़ाते
आजाद , आजादी से घूमते , भेष बदल कर भटकते नहीं
लेकिन नहीं
इनको देश से प्यार था
स्वतंत्रता माझा जन्म सिद्ध हक्क आहे
वह हमें मिलना ही चाहिए
तिलक - गोखले भाषा विवाद में नहीं पड़े
तब सब भारतीय थे
नमक सबका था
रगों में खून हिन्दुस्तानी था
कोई अशफाक था तो कोई खुदीराम था
भारत सबका था
आज भी है
इस मां से हमें कोई वंचित नहीं कर सकता
जननी की रक्षा- सुरक्षा भी तो हमारा कर्तव्य है
अधिकार तो है जिम्मेदारी भी तो है
यही तो हर साल आजादी आकर हमें बताती है
कुछ याद उन्हें भी कर लो
जो लौट के घर ना आए
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