Saturday, 2 January 2016

२०१६ में संसद में काम होगा या बदजुबानी

नव वर्ष शुरू हो गया है इस नये साल में संसद में काम होगा या फिर यह साल भी वाद विवाद में व्यतीत होगा?
जीएसटी  बिल अटका रह गया
बीता साल तो नेशनल हेराल्ड ,मंदिर में प्रवेश फिर और किसी बात पर
किसने किसी को कुछ कह दिया या भडंकाऊ भाषण
या फिर राहुल गॉधी की छुट्टी का मामला या अखलाक का केस
सारा समय इसी में चला गया
विपक्ष नम्र होना नही चाहता और सत्ता पक्ष अपनी एरोगेन्सी नहीं छोडना चाहता
उनके नेता विपक्ष के नेता को पप्पु तो अपरिपक्व या फिर विदेशी मुल को लेकर या फिर शैतान की उपाधि देकर बयानबाजी करते रहे हैं
मुख्य मुद्दा बाजू में रखकर व्यक्तिगत टिप्पणी करना जारी रहा
अब सत्ता पक्ष को सोचना चाहिए कि वे विपक्ष में नहीं है दूसरे के कार्यों पर दोषारोपण करना शोभा नहीं देता
उनको देश ने मुखिया बनाया है
मुखिया को तो सबको साथ लेकर चलना पडता है और झुकना भी पडता है तभी परिवार चलता है
देश का भी यही हाल है
प्रधानमंत्री जी को भाषण देते समय सोचना चाहिए कि यह भारत का प्रधानमंत्री बोल रहा है
वे या तो चुप रहते हैं या फिर चुनाव  के वक्त अक्रामक भाषा का प्रयोग करते हैं
उनके कुछ नेता और प्रवक्ता इसमें माहिर है
सत्ता पक्ष बोलता रहे और विपक्ष से सहयोग की अपेक्षा करें यह कैसे संभव है
मोदी जी जितने प्रेम से नवाज शरीफ या दूसरे नेताओ से गले मिलते हैं.
कभी मनमोहन सिंह या दूसरों से मिले.
बॉडी लेग्वेंज बताती है कि पक्ष और विपक्ष नहीं एक दूसरे के दुश्मन हैं.
हमेशा एक दुसरे पर तोहमत लगाना
क्या इसी के लिए जनता ने संसद में चुन कर भेजा है
आशा है नेताओ के व्यक्ति गत मसलों को छोड कोई रचनात्मक और जनता की भलाई के लिए कार्य करें
प्रधानमंत्री को बडे भाई की भुमिका निभाना है
न कि शत्रु की
आपको सुनना भी पडेगा चाहे वह राहुल हो ,लालुजी हो या केजरीवाल हो
क्योंकि सबको साथ लेकर चलना आपकी जिम्मेदारी है

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