Monday, 18 January 2016

कार जीवन नहीं है सॉस है तो जीवन है

हर किसी का सपना  एक घर और कार हो अपना
घर लेना तो लगता है मुश्किल पर कार लेना मुमकिन
एक समय था जब आदमी रिटायर होते होते घर तो बना लेता था
पर कार नहीं आज हालात अलग है नौकरी लगते ही कार आ जाती है
पहले इक्के दुक्के धनवानों के पास कार होती थी आज हर घर में कार और एक नहीं प्रति व्यक्ति.
इतनी कारें सडक पर कि कार की रफ्तार कम और प्रदूषण की ज्यादा
कार दौडती नहीं रेंगती नजर आती है
अगर ऐसे ही चलता रहा तो हमारे सॉसों की रफ्तार भी कम हो जाएगी
जब हम ही नहीं रहेंगे तो कार रहकर क्या करेंगी
हमारे बिना तो कार भी बेकार
अब शायद समय आ गया है कि चार पहिए की सवारी छोड दूसरे साधनों का इस्तेमाल करना होगा
सॉस चलती रहेतो यह करना ही पडेगा .
कार को सपना नहीं जरूरत समझना है
वातावरण को दमघोंटू होने से बचाना है
प्राणवायु को विलासिता की भेंट नहीं चढाना है

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