बचपन में एक कहानी पढी थी एक व्यक्ति बहुत दुखी रहता था उसकी हमेशा ईश्वर से शिकायत रहती थी कि ईश्वर ने उसे कुछ नहीं दिया
एक दिन ईश्वर एक सामान्य आदमी का भेष धर कर आए और कहा कि तुम मुझे एक हाथ दे दो मैं तुम्हें एक लाख दूगा तो उसने कहा कि फिर मैं क्या करूगा
तो फिर बारी बारी से शरीर के हर अंग ऑख पैर इत्यादि मॉगने लगे उसने कहा कि उसके अंगों का मोल पैसे से नहीं लगाया जा सकता
तब जाकर उसे समझ में आया कि उसे इतना सही सलामत अनमोल शरीर मिला है तब मैं काम क्यों नहीं कर सकता
आद जब हम किसी दिव्यांग को देखते हैं जो कि हाथ पैरों में अपंगता होने के बावजूद , नेत्रहीन होने के बावजूद एक ठसक और स्वाभिमान से जाते हुए दिख जाएगे
इसके विपरीत कुछ ऐसे लोग जिनके हाथ -पैर सही सलामत है जो भीख मॉगते और गिडगिडाते दिख जाएगे
भीख मॉगना इनका पेशा बन चुका है और न देने पर कभी -कभी कोसते हुए और बद्दुआ देने पर भी बाज नहीं आते
पिछले दिनों एक किन्नर पहली बार टेक्सी चालक बना
दाद देनी चाहिए ऐसे लोगों की
भीख मॉगने वाले सही सलामत व्यक्ति को सरकार किसी मेहनतकश कार्य में लगाए तो इनकी संख्या में भी कमी आएगी और लोगों को भी ऐसे लोगों को भीख देकर बढावा नहीं देना चाहिए
प्रधानमंत्री ने भी उनका सम्मान कर हौसला बढाया है ऐसे लोगों से हाथ पैरों वाले भी कुछ सबक ले
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Friday, 22 January 2016
दिव्यांग से ज्यादा अपंग है हाथ -पैरों वाले
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