जन्म देते ही माँ ने छला
ना कोई दोष मेरा , तब भी मुझे नदी में बहाया
कवच कुंडल के साथ जन्म मेरा
सूर्य पुत्र होकर भी रहा सदा अंधेरा
जाति के आधार पर बांटा गया
गुरू द्वारा ही मेरी विद्या छीनी गयी
कवच - कुंडल अर्जुन के पिता इन्द्र ने मांग लिया
मैं दानी बना रहा जीवनपर्यन्त
हर किसी ने मुझसे कुछ ना कुछ माँगा
कभी मित्रता के नाम पर कभी पुत्र के नाम पर
मृत्यु के समय पर भी छला ही गया
रथ का पहिया धंसा था मैं निकालने में प्रयत्नशील
निशस्त्र मुझ पर वार किया गया
वह भी सुदर्शन चक्र धारी के कहने पर जो मेरे ही कर्मों की सजा मुझे दिला रहे थे
अर्जुन के साथ तो समाज , माता - पिता और स्वयं कृष्ण थे तो वह कैसे पराजित होता
क्या गलती केवल मेरी ही थी पूरा समाज सहभागी नहीं था
सबको जीवन देने वाले त्रिलोकपति सामने खडे थे मैं लाचार उनसे अपना जीवन भी नहीं मांग सका
आदेश ही उनका था तो याचना किससे करता
दोष किसका था यह तो पता नहीं
छला तो मैं ही गया हर बार
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