यह कलाकर द्वारा बनाया हुआ है जिसमें दो बडे लोग दिखाई दे रहे हैं
इस ढॉचे में दो वयस्क है जो अलग -अलग दिशा मे मुंह घुमाए बैठे हैं
सबके मन में एक बच्चा होता ही है
लोग समय के साथ बडे और समझदार हो जाते हैं
वक्त सब सिखा देता है
अब सारी दुर्भावनाओं को दूर कर वह एक होना चाहते हैं पर मन का अहम उन्हें अलग नहीं होने देता
बच्चे आपस में लडते झगडते है पर उनके मन में कुछ नहीं होता
उनको एक होते देर नहीं लगती
वहीं बडे कभी -कभी एक मामूली सी बात को लेकर पूरी जिंदगी गुजार देते हैं
इसमें हमारे अपने और अजीज लोग भी होते हैं.
इसलिए सब अहम छोड कर मन के बच्चे की बात मानना चाहिए
जिंदगी आखिर कितने दिन की है
क्यों न समय रहते ही सचेत हो जाय
बाद में पछताने से क्या फायदा
अपनों के आगे झुकना ही पडे तो झुके
टूटे सुजन मनाइए जौ टूटे सौ बार
रहिमन फिर -फिर पोइए टूटे मुक्ताहार
मन तो बच्चा है जी
No comments:
Post a Comment