Thursday, 25 February 2016

यह मजाक नहीं आज की हकीकत है

यह जो देख रहे हैं उसमें एक पिता की विडंबना और आज के युग की युवा की बेबसी और उसकी योग्यता का मजाक है
शिक्षा के साथ बेकारी की समस्या भी मुँह बाए खडी है
ऐसा लगता है बच्चो की शिक्षा पर मेहनत और खर्च करना बेकार है
पढ - लिखकर भी यह जलालत सहना
इंजीनियर आज मजाक में लिए जा रहे हैं
वे पॉच हजार रूपयों की नौकरी करने पर भी मजबूर है
अपनी फीस का खर्चा भी वे निकाल नहीं पाते
बेबसी में उन्हें लगता है कि कम ही पढे होते तो
निराशा धर कर लेती है और वह कभी-कभी भयंकर रूप धारण कर लेती है
बजट आने वाला है आशा है इस बात पर ध्यान दिया जाएगा
युवाओं की प्रतिभा का सही उपयोग होना चाहिए
पढ -लिखकर जब बाहर आए तो सम्मान के पात्र हो
यह तभी मुमकिन है जब वे आत्मनिर्भर हो
सम्मान से जीवनयापन करें और इसके लिए एक अदद नौकरी की जरूरत है 
उनके लिए रोजगार निर्माण किया जाय
ताकि विदेशों में भी उनके पलायन को रोका जाय

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