झाडू ,डस्टबीन ,जूते ,चप्पल ,सफाई के है ये औजार
पर इनकी जगह कोनों में या घर के बाहर
अगर ये नहीं रहते तो स्वच्छता नहीं होती
बीमारियों की भरमार होती
जूते ,चप्पल बिना पैर भी असुरक्षित
ऐसे ही इन पेशों से जुडे व्यक्ति को भी हेय दृष्टि से देखना ,फिर वह चाहे सफाई कर्मचारी हो या जूते -चप्पल सीने वाला मोची
देखा जाय तो असली सम्मान के पात्र यही है
धोबी कपडे धोकर गंदगी साफ करता है
और दूसरे भी व्यवसाय से जुडे लोग कहीं न कहीं समाज के लिए उपयोगी
हमारी जातियों की रचना भी कार्य के आधार पर हुई थी
आज फिर समय बदल रहा है
मॉल में साफ -सफाई करने वाला ब्राहण का लडका भी है
इसका एक उदाहरण कि एक राज्य में भरती के लिए सफाई कर्मचारियों के पद के लिए हर जाति और वर्ग के लोगों ने फॉर्म भरा है
हॉ यह अलग बात है कि योग्यता का मापदंड केवल साक्षर होने के बावजूद स्नातक भी अर्जी दे रहे हैं
जो कि नौकरी की समस्या की ओर इंगित करती है
स्वेच्छा से अपनाया कार्य और मजबूरी में अपनाया
दोनों मे फर्क है
फिर भी यह बात तो है कि समाज में बदलाव हो रहा है
कोई भी काम छोटा या बडा नहीं
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Tuesday, 9 February 2016
समाज की सोच बदल रही है
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