इतनी भीड ,इतना कोलाहल और शोरगुल
मन सोचता था कि कब इससे मुक्ति मिले
एकांत मिले ,मनमर्जी चले पर वह मयस्सर ही नहीं
व्यस्सतता का ओर -छोर नहीं
हमेशा घर की ही धुऩ
बच्चों के झगडे ,खाने की फरमाइशे ,रूठना -मनाना
हँसी -मस्ती ,शैतानियॉ ,छीना -झपटी ,उलट -पुलट
घर नहीं जैसे दंगल का अखाडा हो
आज सब जगह सन्नाटा पसरा है
बच्चे अपने -अपने रास्ते पर चल पडे हैं
दोष किसी का भी नहीं है
चिडियॉ का बच्चा भी जब बडा हो जाता है
तो फुर्र से उड जाता है
किसी से अपेक्षा ही क्यों
सबकी अपनी-अपनी जिंदगी है
क्यों हम सोचे कि हमने ,तुम्हारे लिए इतना किया
त्याग और बलिदान की दुहाई दे
हमने उनके लिए नहीं अपनी खुशी के लिए किया
बच्चों को खुश देखकर हमें खुशी मिली
उनकी इच्छा पूरी कर जैसे हमने अपनी इच्छा पूरी की
वे हमारे जीने का कारण बने
यह तो समय है कभी हमारा था आज उनका है
पालन -पोषण का मोल नहीं चाहिए हमें
बस थोडी सा सम्मान और अपनापन
आज के समय में वहीं बहुत है
आपाधापी के युग में स्वंय के लिए समय नहीं है
नयी पीढी पर बोझ लादना नहीं है
उनका मार्ग प्रशस्त करना है
हमने अपनी जिंदगी तो जी ली
उनको भी जीने दिया जाय
वे हमारे जिम्मेदारियों का बोझ उठाने और जन्म का अहसान चुकाने के लिए नहीं आए है
हमें उनके साथ-साथ अपने भी बुढापे का इंतजाम भी करना है
न कि रोना और कोसना
कोई करे तो भी ठीक और न करे तो भी ठीक
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Saturday, 6 February 2016
हर किसी को अपनी जिंदगी अपने तरिके से जीने का अधिकार है
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