एक मई - लेबर डे
यह तो साल में एक बार आता है
पर यहॉ मजदूर रोज मरता है
रोज कुऑ खोदना और रोज पानी पीना
यह उस पर लागू होता है
देश के विकास में जिसका योगदान होता है
लोगबाग उसे भूल जाते हैं
वह सडक पर ही जिंदगी बसर करता है और वही मर जाता है
लोग ऊपर से उन्हें ही कोसते रहते हैं कि इनका कोई रैन - बसेरा नहीं है क्या?
हमारे सडक,ईमारतें ,रेल या जो भी चमचमाते हुए दिखाई देते हैं
इन मजदूरों की बदौलत ही है
आए दिन समाचार आते रहते हैं ,पटरी पर काम करने वाले मजदूर रेल से कटकर मर गए
बिंल्डिंग में काम करते वक्त मजदूर की गिरकर मौत हो गई
कभी - कभी तो एक ही साथ कितनों की मौत हो गई बॉस के बॉबू टूट जाने के कारण
जब तक उसके पास ताकत रहती है तब तक वह काम करता है, एक दिन बीमार हो गया तो खाने को भी मोहताज
इनकी कोई कद्र नहीं
जब दंगा -फसाद होता है या राजनीतिक पार्टियॉ अपने फायदे के लिए बवाल करवाती है
तो पहला निशाना यही लोग होते हैं
इन्हें ही मार - मार कर खदेडा जाता है
क्योंकि इनका घर - द्वार नहीं होता
यह अगर बैठ जाय तो सारा कामकाज ठप्प हो जाएगा
विकास की गति वहीं रूक जाएगी
आज कारपरोट जगत में जो काम कर रहें है वह भी आराम से ,क्योंकि घर में नौकर और काम करने वाली बाई है.
बच्चे संभालने से लेकर घर का सारा काम
चमचमाते ऑफिस इनके कारण ही है
आज सफाई कामगार न हो तो क्या होगा
इनकी अहमियत समझनी पडेगी
इनको वेतन देकर हम कोई अहसान नहीं करते बल्कि ये हमारा जीवन आसान बना रहे हैं
आज शहरों की ओर पलायन क्यों हो रहा है
कोई खेती और मजदूरी करना नहीं चाहता
मजदूरों के अभाव में खेती की और दुर्दशा हो रही है
आद वह मनरेगा में काम करेंगे पर खेत में नहीं
बडे किसान परेशान है
बहुत ताकत है इनमें
केवल कामगार दिवस मनाने से नहीं बल्कि इनकी क्षमता को पहचानना होगा
निराला जी की कविता याद आ रही है
" वह तोडती पत्थर ,मैंने देखा इलाहाबाद के पथ पर"
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Monday, 2 May 2016
क्यों मजबूर है मजदूर
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