रिक्शावाला पैडल मार रहा है रिक्शे को आगे घसीट रहा है
पसीने से लथपथ ,भारी - भरकम सवारी को ढोते हुए
लोगों को उनके गंतव्य स्थान पर पहुँचाते हुए
जानवर को सामान ढोते देख मन दया से भर उठता है
पर यह आदमी जिसके पैर लडखडा रहे हैं
चेहरे पर झुरिया पडी है
हॉफ रहा है
दम लिया नहीं कि कहीं से आवाज आई
ऐ रिक्शावाले इधर आ
वह सवारी तो ढो रहा है
उसे परिवार का पेट जो पालना है
वह केवल रिक्शा नहीं खीच रहा
अपने परिवार की गाडी को खीच रहा है
वह रिक्शा चलाएगा तभी तो परिवार की गाडी भी चलेगी
यह पेट है जनाब जो किसी को चैन से नहीं रहने देता
यह चैन से रहे इसलिए इसको तो भरना ही है
भरने के लिए मेहनत भी करनी है
और इसकी भूख तो कभी शॉत नहीं होती
पशु को तो खाना मिल ही जाएगा
पर इंसान को कौन देगा
भीख मॉगे या मेहनत करे
और किसी के आगे हाथ फैलाने से तो अच्छा है
मेहनत से दो जून की रोटी खाना
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Thursday, 30 June 2016
रिक्शा नहीं घर चला रहा है
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