Saturday, 23 July 2016

खुशी किसी की मोहताज नहीं

रास्ते पर जाते हुए हर जगह गढ्ढे ही गढ्ढे
बारीश हुई नहीं कि गढ्ढों का कहर शुरू
देख कर न चले तो पता नहीं क्या हाल हो
चोट लगे या हाथ- पैर टूटे या सर फूटे
मन ही मन सरकार को कोसना शुरू.
अचानक कुछ बच्चे कीचड भरे गढ्ढों में पैर डालते
मस्ती करते ,उछलते जाने लगे
चेहरे पर मुस्कान और खिलखिलाहट
मानो स्वर्ग का सुख प्राप्त हो गया हो
कीचड और गढ्ढो से उनका कुछ लेना -देना नहीं
कपडे मैले हो ,इसकी कोई परवाह नहीं
गढ्ढे तो है पर
एर उससे खुश है दूसरा खिन्न और क्रोधित
यह अपना - अपना नजरियॉ है
कीचड और गढ्ढे में पैर डालकर आगे बढा जाय या
उसे देख कुढते- मसोसते रहे
यही तो जीवन है भाई
खुशी किसी की मोहताज नहीं

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