Saturday, 23 July 2016

चिट्ठी आई है

चिट्ठी का इंतजार रहता था हमेशा
डाकियाकी डाक आती ,चिट्ठी साथ लाती
सुबह- सबेरे बॉट जोहती रहती
क्या लिखा होगा चिट्ठी में
चिट्ठी तो कागज का टूकडा ही है ,पर लिखी जाती है भावनाएँ ,अंतर्तम की बातें
कागद की पाती नहीं दिल का टूकडा है चिट्ठी
तभी तो सात समंदर पार वाले का भी इंतजार रहता था
डाकिया ,डाकिया नहीं प्रेमदूत होता था
प्रियतम की पाती लाने वाला
चिट्ठी मिलते ही मनमयूर नाच उठता था
लगता उनसे साक्षात भेंट हो गई हो
किसी कोने में ले जाकर बार- बार पढती
हर दिन पढती जब तक कि दूसरी न आ जाती
बिना लिखे ही सब समझ जाती
चिट्ठी का उत्तर देने की तैयारी
मन की भावनाएं स्याही में डूबो - डूबोकर उकेरती
डाक में डाल आती जवाब के इंतजार में
आज सब कुछ है फोन ,मोबाईल
पर जो बात चिट्ठी में थी अब कहॉ
पन्ने पर पन्ने भरते जाते थे पर इच्छाए नहीं भरती थी
चिट्ठी तो आखिर चिट्ठी थी
प्रियतम का संदेश लाती ,मन को हर्षाती ,कभी रूलाती ,कभी हँसाती
सबसे अनोखी ,सबसे निराली अपनी चिट्ठी

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