Saturday, 30 July 2016

साइकिल की सवारी सबसे भारी

मैं साइकिल बचपन की साथी
मुझ पर बैठ बचपन डोला
बडे होने पर विद्यालय पहुँचे
दोस्तों संग मौज - मस्ती की
जब चाहा उठाया और चल पडे
मैं भी हमेशा तुम्हारे साथ चली
कोई खर्चा नहीं ,बस थोडी सी हवा भरवाई
जितना चाहा उतना चलाया ,जहॉ चाहा ,उठाया - रखा
छोटी और संकरी जगह से भी पार करवाया
अच्छा व्यायाम भी करवाया
वातावरण को प्रदूषण मुक्त बनाया
मैं न पेट्रोल भरवाती न धुऑ फुकवाती
हॉ पर फर्राटा तो न भर सकती
मेरी चाल तो हा तेज पर तुम तो उससे भी तेज
चंद सेकंड में आगे पहुँचना ,सबको पीछे छोड जाना
आगे बढना तो ठीक है पर स्वयं को हानि पहुंचाकर
धुऑ- धुऑ होते - होते कहीं सब खत्म न हो जाय
और फिर मेरी याद आ जाय
अमीर- गरीब ,मजदूर से मालिक सबकी साथी
खेतों की पगडंडी से पक्की सडक तक
बचपन से ले बुढापे तक साथ निभाती
न लाइसेंस न उम्र का बंधन
फिर भी तुम मुझे भूला रहे
मैं तो फिर भी हर क्षण साथ दूंगी
बस मुझे मत भूलना
मेरी सवारी सबसे भारी

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