Sunday, 3 July 2016

हर मौसम के रंग निराले - ढंग निराले

बरखा रानी पधारी है ,मन में उमंगे लाई है
रिमझिम - रिमझिम बारीश
बूंदे टपकाती ,तन - मन को भिगोती
हरियाली और खुशियों का सौगात लाई है
रमजान का महीना और ईद का त्योहार भी साथ लाई उसके बाद शुरू होगा सावन - मन भावन.
अपने साथ त्योहारों की पोटली लिए
तन - मन झूलेगा सावन में
किसान का उत्साह दुगुना
रोपनी जो होगी खेतों में धान की
तब तक आ जाएगा रक्षा बंधन
भाई - बहनों को प्रेम की डोर में बॉधने
नारियल पूर्णिमा खत्म होते ही भगवान गणेश का आगमन
विधिकर्ता ,दुखहर्ता ,सिद्धीविनायक
गणेश का विसर्जन अगले साल तक आने के लिए
मॉ जगदम्बा का पधारना
दशहरा और गरबे की धूम
रामलीला का आयोजन और रावण दहन समाप्त
येशु क्रिस्त का और नये साल का आगमन करता
सबका प्यारा क्रिसमस
फिर आई मकर संक्राति
भगवान भास्कर का एक जगह से दूसरी जगह गमन
पंतगों की उडान और तिल- गुण की मिठास का अहसास
आया गुडी पाडवा ,हिंदू नव वर्ष लेकर
शीत त्रृतु आई गुलाबी चादर ओढे
फिर आया होली का त्योहार
रंगों से सराबोर करता ,
फसल की कटाई और लोहडी का त्योहार
अब आया परीक्षा का मौसम
बच्चों की मेहनत को निखारता
फिर छुट्टी मनाने औ शादी - ब्याह का मौसम
अब तो सूर्य देव भी पूरे शबाब पर है
अपनी तपन से बेहाल करते
ठंडाई और शरबत का सहारा
तथा ग्रीष्म त्रृतु को बाय - बाय कहते
बरखा की प्रतीक्षा करते
यही तो त्रृतु चक्र है
ग्रीष्म ,बरखा और शीत
हॉ बीच में बसंत बहार भी है
कोयल की कू कू और मोर का नृत्य भी है
पपीहे की पी पी की ध्वनि और पशु- पक्षियों का चहकना भी है
पेडो की हरियाली और फलों की बहार भी है
यही तो मौसम है भाई पल - पल बदलता
हर मौसम के रंग निराले - ढंग निराले

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