पत्नी की लाश कंधे पर लेकर मॉझी चला
अमीर देखते रहे ,गरीब असहाय हो रहे
साथ में चलनेवाली सहधर्मिणी कंधे पर चली
मासूम बेटी साथ- साथ रोती चली
किसी का दिल न पसीजा
सरकार की योजना धरी की धरी रह गई
मरने पर चार कंधों की बजाय अकेले चली
अमीर व्यक्तियों की संख्या में सातवॉ
पर गरिबी में सबसे पिछडा
जीते- जी तो भूखे मरे
मरने पर तमाशा बन चले
लोग देखते रहे ,मॉझी चलता रहा
समाचारों की सुर्खिया बना
तब जाकर चेते कुछ लोग
गरीबी में जीना ,गरीबी में ही मरना
मरने पर कफन की बात तो दूर
चार पहियों की सवारी का भी न इंतजाम कर पाना
कितना बेबस ,लाचार पति
पर फिर भी हिम्मत तो देखो
हार नहीं मानी
न जाने कितने किलोमीटर चलता रहा
सरकार और समाज के मुंह पर तमाचा मारता रहा
लोग मुकदर्शक बने रहे
त्योहारों पर लाखों रूपये पानी की तरह बहाया जाय
चुनाव में करोडो रूपये खर्च हो
जिम में पसीने बहाए जाय
पर गरीब सदा गरीब ही मरे
यह तो विडंबना है देश की
भगवान के दरबार सोने से भरे पडे हैं
पर गरीब के घर में निवाला भी नहीं है
इतना मायूस हो रहा है ,दर्द को झेल रहा है
फिर भी चल रहा है
व्यवस्था को तमाचा मार रहा है
पत्नी का शव नहीं हिन्दूस्तान की गरीबी को ढो रहा है
सबको शर्म सार कर रहा है
और कितना सबूत चाहिए
यह एक ही सबूत काफी है
सबको झकझोरने के लिए
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Friday, 26 August 2016
भारत की गरीबी मॉझी के कंधों पर
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