Saturday, 1 October 2016

जरा याद करो कुरबानी- सेना के जवानों को पैसों से न आका जाय

कब क्या बोलना है और क्यों बोलना है
बहुत संभलकर और सोचकर बोलना है
आज सेना के जवान मारे जा रहे हैं
उनकी बनिस्पत ही हम आजादी की सॉस ले रहे हैं
हमारे बच्चे उन्नति कर रहे हैं
आगे बढ रहे हैं ,फल- फूल रहे हैं
उनके योगदान को हम नगण्य मान ले
कल किसी ने कहा और इसके पहले भी सुना था
"अरे !सेना में कौन जाते हैं ,गरीब घरों के और गॉव के कम पढे- लिखे लोग जाते हैं
कौन अपने बच्चों को सेना में भेजेगा
मैं ,तुम या आप"
मरने के लिए और बाद में सम्मान "
शायद सही भी है
पर अगर सब यही सोचने लगे तो कोई नहीं सेना में जाएगा
और हम - आप अमन से नहीं बैठ सकते
और यह गलतफहमी भी नहीं होना चाहिए कि सेना में अनपढ और गरीब लोग ही जाते हैं
मैंने केन्द्रीय विघालय आइ एन एस हमला - मुंबई में एक साल पढाया है
वहॉ के बच्चे कहते थे सिविलियन लाईफ
हमें तो पसन्द नहीं है
हम तो फोर्स में ही जाएगे
जल ,थल और वायु सेना तीनों में बडे रेंक से लेकर से सिपाही सब होते हैं
इसके अलावा बीएस एफ और रिजर्व पुलिस
सबको हर रोज लोहा लेना होता है
दुश्मन के साथ-साथ आपातकालीन परिस्थिती जैसे बाढ और प्राकृतिक आपदा के साथ-साथ पब्लिक की उग्र भीड का भी
दुश्मनों की गोली की बात तो छोडो
सामान्य जनता और उग्रभीड के पत्थर भी
सब अपनी जान हथेली पर लेकर चलते हैं
हमारे जनतंत्र का चौथा स्तम्भ पत्रकार
आए दिन हमले होते रहते हैं
पर फिर भी वह अपना काम करते रहते हैं
धमकी मिलने से घर में नहीं बैठते
अगर पैसे के लिए ही काम करना होता तो सब बेरोजगार फौज में भरती हो जाते
यहॉ- वहॉ घूमेगे ,जबरन वसूली करेगे और लोगों को परेशान करेंगे
इससे तो सेना में भरती और सीमा पर लडने वाला युवा है
पैसों के लिए किसी की जान नहीं लेता
देश के लिए अपनी जान देता है
अपराध ,लूटपाटऔर चोरी- चकारी नहीं करता
शान से सीना तान देश और देशवासियों की रखवाली करता है
मरना तो सभी को है
पर एक शान से ,जीवन को सार्थक कर
तो दूसरा बदनामी का धब्बा बन

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