Thursday, 20 October 2016

एक नकल जिसने जिंदगी बदल दी

बात उन दिनों की है जब मैं दसवीं की परीक्षा दे रही थी
पहला ही साल था
१०+२+३ पद्धति का
उस समय ट्युशन का तो सवाल ही नहीं था
किताब और कॉपी का जुगाड हो जाय
वही बहुत था.हिन्दी माध्यम की पाठशाला
अंग्रेजी कुछ समझ नहीं आती थी
९वीं तक तो जैसे- तैसे पास कर लिया
पर बोर्ड की परीक्षा.
अंग्रेजी का पेपर सामने आते ही हाथ- पैर फूल गए
कुछ समझ आता था ,कुछ नहीं.
व्याकरण तो बिल्कुल नहीं
नकल करना अच्छा नहीं ,यह मालूम था
पर कोई चारा भी नहीं था
कुछ अगली बेंच पर बैठी साथी ने दिखाया
कुछ वे सर जो सुपरविजन कर रहे थे बताया
दो चार व्याकरण और कुछ रिक्त स्थान.
रिजल्ट आने पर मैं पास हो गई थी
पासिंग मार्क्स मिले थे अंग्रेजी में
पर साल रद्द नहीं हुआ
उसके बाद तो कॉलेज में साहित्य ले दिन पर दिन उन्नति की सीढियॉ चढती गई
आज ऐसा लगता है अगर वह नकल न होती तो पढाई वही रूक जाती.
आज भी सुपरविजन करते समय वही याद आ जाता है
नकल करना अच्छी बात तो नहीं
पर क्या पता एक- दो रिक्त स्थान किसी के जीवन को पूर्ण कर दे
पास होने पर उसकी राह आसान हो जाएगी
आगे का रास्ता मिल जाएगा
फिर बुद्धि किसी की मोहताज नहीं होती
अगर सामर्थय है तो आगे बढेगा वरना
३५% में ही जिंदगी सिमट जाएगी

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