ऐसा क्यों होता है ,जब कोई चला जाता है हमारे बीच से
तब हम सोचते हैं
काश ! ऐसा कर पाते
मन में टीस उठती है
पीडा और बेचैनी महसूस होती है
कुछ न कुछ छूट ही जाता है
जाने वाला अब उस दुनियॉ में चला गया है
जहॉ से वापस आना संभव नहीं
अब तो ऊपर जाने पर ही मुलाकात हो
वह भी शायद ,अगर दूसरा कोई जग हो तो
गिले- शिकवे दूर हो
जब तक हम धरती पर रहते हैं
एक- दूसरे से उलझते रहते हैं
बोलचाल बंद कर देते हैं
न जाने गुस्से में क्या - क्या कह देते हैं
जबकि ये सब अपने ही होते हैं
हम मन से उनका बुरा नहीं चाहते
उनको चोट लगती है पर दर्द हमें होता है
पर संसार तो संसार है
कर्म है ,बंधन है
यह सब करते - करते जाने - अंजाने न जाने क्या कुछ घटता रहता है
अगर हमें पता होता कि
कल की सुबह इस व्यक्ति से मुलाकात न होगी
तो हम सावधानी बरतते
जाने वाले की याद हमसे छूटती नहीं
किन्तु और परन्तु ,काश ऐसा- वैसा
में हम पडे रहते हैं
और यह सब तो होगा ही
साथ रहेगे
तो लडे - झगडेगे ,रूठेगे- चिल्लाएगे ,क्रोधित भी होगे
जीवन इसी का नाम है
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Wednesday, 19 October 2016
ऐसा क्यों होता है किसी के जाने के बाद
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