अन्न का अपमान यानि ईश्वर का अपमान
पेट भर भोजन मिलना यह भी ईश्वर की मेहरबानी
इसी भोजन के लिए व्यक्ति क्या- क्या नहीं करता
लोगों के सामने हाथ फैलाता
अपने खून- पसीने को एक करता
बडी मुश्किल से कुछ लोग दो जून की रोटी जुटा पाते है
रोटी होती तो स्वयं में गोल है
पर सारे संसार को गोल - गोल नचाती है
इसी रोटी के चक्कर में न जाने कहॉ- कहॉ की खाक छानता है इंसान
अपने घर - गॉव ,परिवार को छोडता है रोटी कमाने के लिए
अपनो के लिए भोजन का इंतजाम करने के लिए
न जाने क्या- क्या सुनना पडता है और करना पडता है
पेट की आग बुझाने के लिए
निराला जी की भिक्षुक की पंक्तियॉ ---
" पेट- पीठ है एक ,चल रहा लकुटियॉ टेक "
या फिर मजदूरनी पर ---
"वह तोडती पत्थर मैंने देखा इलाहाबाद के पथ पर "
हर कोई भाग रहा है और उसका मुख्य कारण भोजन
पर एक विडंबना यह भी है कि
कुछ को भोजन का निवाला नहीं मिलता
तो दूसरी तरफ न जाने कितना खाना फेका जाता है
गोदामों में अनाज सडता है
शादी- ब्याह में तो अन्न की बर्बादी तो होती ही है
और आजकल के बुफे सिस्टम में तो और ज्यादा
लोग थालियॉ भर लेते हैं बाद में वह नालियों में जाता है
भोजन देने वाली को अन्नपूर्णा माना जाता है
किसान को अन्नदाता माना जाता है
रसोई की पूजा की जाती है
फिर यह अन्न रास्तों पर पडे मिल जाता है
भर पेट भोजन मिलना भी भाग्य की बात होती है
भूखे का पेट भरने को सबसे बडा पुण्य माना जाता है
एक ओर बच्चे कुपोषण का शिकार हो रहे हैं
तो दूसरी तरफ ज्यादा खाने से बीमारियों के शिकार हो रहे हैं
हर जीव को भोजन मिलना ही चाहिए
हमें अगर ईश्वर ने दिया है तो हम भी कुछ तो दूसरों का पेट भरे
अन्नदान करे ,भूखे को भोजन कराए
और अन्न का अपमान तो बिल्कुल नहीं
अन्न फेकने के लिए नहीं
जीने के लिए जरूरी है
अन्न का सम्मान करें और हो सके तो अन्नदान भी करें.
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Sunday, 16 October 2016
World food day अन्नदान करें
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