घर में खिडकी पर बैठी सोच रही
क्या करूँ ,कहॉ जाऊ, जहॉ से नोट आसानी से बदल लाऊ
टेलीविजन पर ही भीड देखकर छूट गई हिम्मत
फिर भी मन न माना
ऐसे हाथ पर हाथ धरे रहने से तो कुछ नहीं होगा
रोजमर्रा की जरूरते कैसे पूरी होगी
पैसे तो चाहिए ही
अब तो पॉच- सौ और हजार के नोट नहीं चलनेवाले
पहले तो पॉच- सौ लेकर जाओ और सामान लेकर आओ कुछ बचे रूपये के साथ
पर आज यह बेकार हो गया है
छोटा रूपया बडा हो गया
पर वह तो है नहीं पास में
किसी तरह हिम्मत जुटाकर निकली
बैंक पर दूर से ही दृष्टि पडी
दूर तक लंबी कतारे
हर कोई बेहाल ,परेशान
इसमें मेरा नंबर कब आएगा???
चलो दूसरी जगह चले
वहॉ भी वही हाल
मन मसोस कर घर वापस लौटी
कुछ खरिदना नहीं है
जो पास में है ,उसी में गुजारा करना है
लगता है अपने ही घर में कैद हो गई हूँ
बाहर निकले भी तो क्या करे???
पैसा तो हैं नहीं पास में
हॉ ,बनिया राशन और केमिस्ट दवाई उधार पर देने को तैयार
पर छुट्टा नहीं
खैर कोई बात नहीं
हर चीज का मूल्य तो चुकाना ही पडता है
भ्रष्टाचार खत्म करना है
काले धन को बाहर निकालना है
तो यह सब भी स्वीकारना होगा
और यह कीमत तो आम आदमी चुका रहा है
अमीर तो काला को पीला कर रहा है
गंगा जी में बहा रहा है
पर आम आदमी तो भोजन को तरस रहा है
कैसे जुटाएगा ,कैसे यात्रा करेगा
यह समझ से बाहर है
वह प्रतीक्षा कर रहा है
कब यह भीड खत्म हो और जीवन सामान्य हो
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Sunday, 13 November 2016
कब यह भीड खत्म होगी ?????
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