बिहार से शुरू हुआ यह पर्व पूरे भारत में और जहॉ कही बिहारी रहते हैं विदेशों तक में
अब तो उत्तर प्रदेश में भी और जोरो शोरो से मनाया जाता है
सीमा के शहर गोरखपुर ,बलिया ,गाजीपूर तक फैल गया है
शादी- ब्याह और रोटी - बेटी के कारण
इस पर्व पर लोग पूजा करने गॉव भी बडी तादाद में जाते हैं
दीवाली के बाद शुरू होता है जिसमें छठ मैया की पूजा की जाती है और संतान की प्राप्ति से लेकर सुख- समृद्धि की कामना की जाती है
घर को साफ- सुथरा किया जाता है और नहाय- खाय के व्रत शुरू होता है
इसमें भूल की गुंजाइश नहीं रहती
नारियल ,सिंघाडा ,गन्ना ,केला ,गेहूँ के आटे से बना ठेकुवा के साथ अनेक प्रकार के फल होते हैं
सूप में रखकर अर्पित किया जाता है
नदी या तालाब में खडे रहकर भगवान सूर्य को अर्घ्य
दिया जाता है
यह पूजा चार दिन तक चलती है
आज हम पर्यावरण दिवस मना रहे हैं
स्वच्छता का महत्तव समझा रहे हैं
पर हमारी संस्कृति में यह पहले से ही विद्यमान है
यह पर्व प्रकृति और मिट्टी से जुडा हुआ है
सहज उपलब्ध होने वाली चीजें ही प्रसाद रुप में होती है ,जो फसल से जुडी हुई हो
यही एक पूजा है जहॉ उगते सूर्य के साथ -साथ अस्त होते हुए सूर्य को भी अर्घ्य दिया जाता है
छठ मैया अपने भक्तों पर कृपा करती है
यह पर्व अब बिहार का ही नहीं रहा
सभी जगह धूमधाम से मनाया जा रहा है.।
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Sunday, 6 November 2016
छठ पूजा की शुभ कामना
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