Saturday, 10 June 2017

क्या करे किसान

पहले मौसम की मार
अब गोलियों की बौछार
क्यों होता है हम पर ही अन्याय
जमाना बदल गया
जीवनशैली बदल गई
पर हम तो वहीं के वहीं
हमारी प्रगति कब होगी
हमें अन्नदाता की उपाधि नहीं
स्वयं और परिवार का पेट भरा चाहिए
हमारे बच्चों को अच्छी शिक्षा चाहिए
हमारी उपज का उचित मूल्य चाहिए
अन्न हम उगाए
लाभ दूसरे ले जाय
व्यापारी ,दलाल और बिचौलिए
यहॉ तक की राजनीतिक पार्टीयॉ भी
हमारे नाम पर सत्ता हासिल कर ले
उसके बाद हमें भूल जाय
किसान का कोई जाति और धर्म नहीं
वह बस किसान होता है
यह बात समझनी होगी
हम भी उग्र हो सकते हैं
कब तक सहता रहेगा किसान
हर कोई एक- दूसरे को दोष दे रहा
अपने गिरेबान में नहीं झॉकते
समस्या को सुलझाने की बजाय दोषारोपण हो रहा
हमें राजनीति नहीं ,हल चाहिए
हम धरतीपुत्र है
धरती का सीना चीर कर अन्न उगाते हैं
हमारी शक्ति को कम मत ऑका जाय
अगर हम हाथ खडे कर लेंगे
तो लोग भुखे मर जाएगे.
पैसों से पेट नहीं भरेगा
यह जो शहरों और महलों में बैठे हैं
उनको भी आगे आना होगा
सरकार पर जोर डालना होगा

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