Friday, 30 June 2017

नमामि गंगे

मैं गंगा हूँ
राजा भगीरथ के अथक प्रयत्नों से मैं पृथ्वी पर आई
उनके पूर्वजों का तर्पण जो करना था
पृथ्वी पर अगर पूरे वेग से आती तो प्रलय मच जाता
परमपिता ब्रहा के कमंडल से निकली और शिवजी की जटा की शोभा बन आगे बढी
हिमालय की गोद से बहती हुई धरती को तृप्त किया
बडे- बडे शहर मेरे ही किनारे बसे
उनका विकास और उत्थान भी हुआ
पर वह यह सबसे बडी भूल कर बैठे
मेरे ही जल को गंदा करने लगे
नाले ,मिल-- कारखानों का पानी छोडने लगे
वह पानी जिसमें स्नान कर सारे पाप धुल जाते हो
वे मुझे ही गंदा करने लगा
मेरा जल जो स्वच्छ - शुद्ध था
उसमें गंदगी डालने लगे
मुझे अपवित्र करने में कोई कसर नहीं छोडी
मोक्ष की प्राप्ति के लिए मेरा ही दुरूपयोग करने लगे
मरे हुए पशु ,व्यक्ति सब डालने लगे
श्राद्ध - तर्पण के फूल और दूसरी सामग्रियॉ भी डालने लगे
कुंभ के समय तो मेरी रौनक देखने लायक होती है
सारा विश्व जैसे इकठ्ठा हो जाता है
सब स्नान करने आते है
साधु- संन्यासी से लेकर विदेशी तक
एक नई नगरी बस जाती है कुंभ नगरी
लोग तो बढ रहे हैं पर मैं तो वही हूँ
मेरा विचार कोई नहीं करता
सबकी अपनी मनमानी चलती है
तब भी मैं कुछ नहीं कहती
पर सबसे ज्यादा नागवार मुझे उस समय गुजरता है
जब कोई दूर से आया व्यक्ति श्रद्धा से मुँह में जल ले मेरा आचमन करता है
तो दूसरी ओर कोई व्यक्ति अपने बच्चे का मल- मूत्र वाला कपडा खंगाल रही हो
अधजली लाशे डाली जा रही हो
मुझमें अपने प्रिय जन  की मौत पर अस्थियॉ  और राख विसर्जित कर रहे हो
मुझमें मुर्तियॉ विसर्जित कर रहे हो मिट्टी के अलावा दूसरी चीजों से बनी
मैं तो जनकल्याण की भावना से इस जग में लाई थी
युग बदल रहा है तो भावना भी बदलना अनिवार्य है
समय के साथ चलना है
मुझमें अस्थियॉ विसर्जित करने की बजाय मेरा सम्मान करें
मुझे गंदा मत करे
स्वर्ग क्या मैं यही जीवनदान दूंगी सदियों तक
जल देकर जीवनदान देने वाली को उसके ही बच्चों की अस्थियॉ लेते हुए कितना कष्ट होता होगा
मैं तो मॉ हूँ ,मुझे मॉ ही रहने दो
मेरी सॉस है तब तक ही जीने की आस है
मैं तो मन से अपना कर्तव्य कर रही हूँ
आप भी तो संतान का फर्ज निभाइए
मानो तो गंगा मॉ हूँ ना मानो तो बहता पानी

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