Tuesday, 1 August 2017

सत्तू और सत्ता का खेल

सत्तू और सत्ता
लालू और नितिश
ये है जनता के नेता
पुराने दोस्त फिर मिले फिर बिछडे
इस बार दोस्ती टूटने का कारण भ्रष्टाचार
चारा घोटाला और सुशासन
क्या यह दोस्त अंजान थे
सब एक - दूसरे के बारे में जानते थे
अचानक अंतर आत्मा की आवाज आई
हाथ छोडा और दूसरे से हाथ मिलाया
कभी गलबहियॉ की थी
आज विरोधी है
क्या यह केवल अंतर आत्मा की आवाज है??
या और कुछ ??
सत्ता का जबरदस्त खेल ,खेला गया है
कौटिल्य के राज्य से आते हैं
राजनीति में तो सब जायज है
पर कहीं यह खेल उल्टा न पड जाय
नितीश , मोदी के साथ रेस में न हो उनकी छाया बन कर रह जाय
सहयोगियों का साथ छोडना कही भारी न पड जाय
मोदी की बाटी के सत्तू में मिल कर वजूद न खो दे
सत्तू में कितनी ही साम्रगी मिली हो
पर ऊपर का कवर तो मोदी ही रहेगे
नाम और सत्ता तो भाजपा की ही होगी
केन्द्र के साथ  साथ अगली बारी बिहार की हो
बिहारी बाबू कही खो न जाय
सुशासन की कल्पना धरी ही रह जाएगी
मोदी का लोहा मानते - मानते अपनी साख न गंवा दे

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