Saturday, 30 September 2017

हम है मुंबई कर

रहते तो है हम महानगर में
भारत की आर्थिक राजधानी
Mini India यानि लघु भारत
कोई प्रांत जो इससे अछूता हो
पर यह भी सत्य है यहॉ जीवन हथेली में लेकर चलते है
लोकल ट्रेन में यात्रा करना किसी जंग से कम नहीं
न जाने रोज कितनी जाने जाती है
कोई गिर कर मरता है तो कोई भीड में दब कर
पर उन्हें शहीद का सम्मान भी नहीं मिलता

सही है यह मुंबई वालो का ही धीरज है
कूद कर चढना , दरवाजें से बाहर लटकना
अंदर डिब्बे में जानवरों से भी बदतर हालत
फिर भी मुंबईकर की स्पीरिट की दाद देनी पडेगी
अगले दिन फिर वही धडपड
यह स्पिरिट है कि मजबूरी
पेट कैसे भरेगा ,परिवार कैसे चलेगा ??
भूख बहुत भयंकर होती है साहब
तभी तो जान हथेली पर रख सफर करते हैं
यह भी नहीं पता कि घर सही - सलामत पहुंचेगे कि नहीं ????

बुलेट ट्रेन चलने वाली है
समय कम लगेगा
घंटे घट जाएगे क्योंकि विद्युत की गति से दौडेगी
एक शहर से दूसरे शहर पहुंचना आसान हो जाएगा
इससे बिजनेस क्लास और उद्योग - धंधे को तो निश्चित फायदा होगा
पर उस आम मुंबई कर का क्या जिसका घर कुछ मिन्टों में या घंटे में हो ??
वह कब तक जद्दोजहद करेगा ???
अंग्रेज चले गए , दशकों बीत गए
पर पुल वही है , गटर वही है
विकास के नाम पर अपनी जेब भरने वाले राजनेता
जरा बताएगे कि यह जवाबदेही किसकी बनती है ??
एक - दूसरे पर दोषारोपण कर मामला खत्म
या फिर संज्ञान लिया जाएगा ??
फिर अगले हादसे का इंतजार किया जाएगा ??
कुछ मिन्टों पर मेरा भी घर है
मैं वहॉ सुरक्षित पहुंच पाउंगा कि नहीं ??
यह कोई बताएगा
या फिर मुंबई कर की धीरज की परीक्षा ली जाएगी
लोग लटकते रहेंगे , मरते रहेंगे ,अपाहिज होते रहेंगे
अपनों को खोते रहेगे
और सरकार की ट्रेन चलती रहेगी

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